Tuesday, April 5, 2016

woh hai zara khafa khafa




वो हैं ज़रा खफ़ा खफ़ा
तो नैन यूं मिलाए हैं कि हो हो
ना बोल दूं तो क्या करूँ
वो हँस के यूँ बुलाए हैं कि हो हो
हँस रही है चाँदनी
मचल के रो ना दूं कहीं
ऐसे कोई रूठता नहीं
ये तेरा खयाल है
करीब आ मेरे हंसीं
मुझको तुझसे कुछ गिला नहीं
बात यूँ बनाए हैं कि ओ हो ...
वो हैं ...
ऐसे मत सताइये
ज़रा तरस तो खाइये
दिल की धड़कन मत जगाइये
कुछ नहीं कहूंगा मैं
ना अँखियां झुकाइये
सर को कन्धे से उठाइये
ऐसे नींद आए है कि हम ...
वो हैं ...

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